14 अगस्त स्मृति दिवस : अब और कोई रिश्ता न टूटे! अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें...
आजादी के 75 वें सालगिरह की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी ने “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” मनाने का संकल्प लिया है। उन लाखों शहीदों के नाम जब अगले ही दिन देशवासी आजादी के जश्न में सराबोर होने वाले थे, विभाजन के कारण उन्हें देश की आजादी की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी। वे अपने ही हिंदुस्तान में बेगाने होकर निकाल बाहर किये जाने लगे और मारे गए। कहते हैं न जो मुल्क अपना इतिहास नहीं याद रखता, वो एक दिन खुद इतिहास हो जाता है।
अपने सन्देश में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा है “जहां भारत के लोग आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए अपनी मातृभूमि के उन बेटे-बेटियों को नमन करते हैं, जिनको भारत के विभाजन के दौरान अपने प्राण न्योछावर करने पड़े थे। भारत सरकार ने अपने प्राण गंवाने वाले लोगों की याद में 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में घोषित करने का निर्णय लिया है।” “आजादी या विभाजन” 15 अगस्त 1947 को हमें ये दोनों चीजें एक साथ मिली थीं। ये अलग बात है कि आजादी के जश्न में हम बंटवारे के दर्द, अपने लाखों भाइयों /बहनों को खोने का गम और उसके खरोंच को धीरे-धीरे भूलते गए और हमारे जेहन में इतिहासकारों ने यह डाल दिया कि भारत पाकिस्तान के बीच यह बंटवारा महज दो भाइयों के बीच विभाजन था, जिसमें छोटे ने थोड़ी शरारत कर दी थी। इन इतिहासकारों के लिए भारत कभी एक हुआ ही नहीं था, सो एक अलग पाकिस्तान बनने से क्या फर्क पड़ता है ?
‘पार्टीशन हॉर्ररस रिमेम्बरेंस डे’ का यह दिन
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि बहुत फर्क पड़ता है जी! प्रधानमंत्री ने कहा “पार्टीशन हॉर्ररस रिमेम्बरेंस डे “का यह दिन हमें भेदभाव ,वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होगी”। एक सालाना उत्सव के तौर पर हम 15 अगस्त मनाते हैं, कुछ नेताओं की बड़ी-बड़ी उपलब्धि की चर्चा करते हैं, लेकिन क्या कभी हमने चर्चा की कि बंगाल, पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान, पेशावर, हैदराबाद, क्वेटा और दूसरे पाकिस्तान के शहरों और गांव में रहने वाले लाखों हिन्दू, सिख और दूसरे प्रताड़ित लोगों ने अगले दिन कैसी आजादी मनाई होगी। एक देश के रूप में क्या हम इतने विभाजित हैं कि उन परिवारों के दर्द में शामिल होने के फर्ज भी भूल गए? भूल गए उन परिवारों की कहानी, जिनकी घरों की सुंदर बेटियों/बहनों को अपने मां-बाप के साथ आने नहीं दिया। उन्हें जबरन रोक लिया गया, उनके साथ जबरन शादी कर दी गयी।
1946 में आज की तरह ही खेला होबे की शुरुआत बंगाल से ही हुई थी
याद कीजिये जब सेक्युलर जिन्ना ने 1940 के मुस्लिम लीग की बैठक में एक प्रस्ताव रखा, जिसे बाद में पाकिस्तान प्रस्ताव का नाम दिया गया। मोहम्मद अली जिन्ना ने हर हाल में मुस्लिम आबादी के लिए आजाद मुस्लिम देश बनाए जाने का प्रस्ताव रखा था। जिन्ना ने यह साफ कर दिया था कि मुसलमानों के लिए अलग मुल्क के बगैर कोई समझौता स्वीकार नहीं होगा। 1946 में आज की तरह ही खेला होबे की शुरुआत बंगाल से ही हुई थी। ग्रेट कलकत्ता किलिंग में हजारों लोग मारे गए थे, लाखों लोग बेघर हुए। नोआखाली जिले की साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए गाँधी जी ने उपवास रखा था, लेकिन इसके बाद पंजाब में फैली साम्प्रदायिक हिंसा की आग पूरे मुल्क में फैलती चली गयी।
महज 30 साल में दो टुकड़ों में बँट गया था पाकिस्तान
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान एक अलग आजाद मुल्क बना जिसे जिन्ना की भाषा में छीन कर हासिल की गयी थी या फिर कुछ नेताओं ने अपनी महत्वाकांक्षा के कारण बंटवारे के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था ? लेकिन इस बंटवारे ने करोड़ों लोगों को घरों से बेघर कर दिया था। लाखों लोग साम्प्रदायिक हिंसा की भेंट चढ़ गए। दुर्भाग्य देखिये, मजहब के नाम से बना मुल्क पाकिस्तान महज 30 साल में दो टुकड़ों में बंट कर दो अलग मुल्क हो गया। जिन्ना ने जिस डेमोक्रेटिक पाकिस्तान बनाने की बात की थी, वहां फौजी जनरलों ने सत्ता पर कब्जा जमा लिया और जम्हूरी इदारे महज कठपुतली साबित हुई। मजहब के नाम पर बना पाकिस्तान इन 75 वर्षों में 4 विश्वविद्यालय नहीं बना पाया और न ही अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा दे पाया। अब तो पाकिस्तान में भी लोग कहने लगे हैं कि यह बंटवारा क्यों हुआ था? पाकिस्तान का मुसलमान सऊदी या मिड्ल ईस्ट से नहीं आया था, वो भी हिंदुस्तानी माँ-बाप के औलाद थे। क्या सिर्फ आस्था बदल जाने से संस्कृति बदल जाती है ? मुल्क बदल जाते हैं?
पाकिस्तान बैठा बारूद के ढेर पर
ये वही हिंदुस्तान है, वही सरदार पटेल थे जिसने आजादी के तुरंत बाद 600 से ज्यादा प्रिंसली स्टेट को भारत में विलय को यकीनी बनाया लेकिन पाकिस्तान एक ही मजहब वालों के चार प्रोविंस को एक नहीं रख सका। पाक मकबूजा कश्मीर से लेकर ,बलोचिस्तान, सिंध, सराईकी में पाकिस्तान से अलग होने की छटपटाहट है। आईएसआई की साजिशों ने तालिबान, अलकायदा, लश्कर, जैश और दूसरी जिहादी तंजीमो ने पाकिस्तान को बारूद के ढेर पर बैठा दिया है। सबकुछ लुटा-पीटा कर पाकिस्तान आज सिर्फ चीन का उपनिवेश बनकर रह गया है।
इस हालत में आजादी के जश्न में सराबोर होने से पहले अगर प्रधानमंत्री मोदी स्मृति दिवस के दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करके आपसी एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं मजबूत करने का संकल्प लेने का आग्रह करते हैं तो यकीन मानिए एक देश के रूप में यह हर नागरिक का कर्तव्य है। हमें यह भी याद रखने की जरूरत है कि बीसवीं सदी की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक 14 अगस्त जैसी त्रासदी किसी मुल्क के सामने न घटे, इसके लिए सामजिक एकता जरूरी है।