अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी, आखिर क्यों कहलाते हैं स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया
यह तब की बात है, जब आजादी हासिल करने से देश मात्र चार महीने दूर था। वह 21अप्रैल 1947 का दिन था। दिल्ली के मेटकॉफ हाउस में कुछेक प्रशिक्षु अधिकारी बैठे हुए थे। तभी सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उस कक्ष में प्रवेश किया। लौह पुरुष ने अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि, “आपका कार्य, चरित्र, देश और देशवासियों के प्रति आपकी निष्ठा ही, इस अखिल भारतीय सेवा का भविष्य तय करेगी। सरदार ने स्पष्ट शब्दों में प्रशिक्षु अधिकारियों से कहा कि,अब तक, जो पिछली सिविल सेवा थी, उसमें नागरिक सेवा भाव का अभाव था। उसके अधिकारियों का प्रशिक्षण भी विदेशी भूमि पर हुआ, तब वह अखिल भारतीय सेवा कैसे होगी? इसीलिए अब आप सबको विशाल भू-भाग वाले देश में एकीकृत तंत्र के रूप में कार्य करना है। इस कार्य का मूल, नागरिक सेवा का भाव होगा।” उस दिन दुनिया के सबसे प्राचीन देश ने, स्वतंत्रता के बाद अपने नागरिकों का हित सुनिश्चित करने के लिए समन्वित तंत्र की नींव डाली। सरदार पटेल ने इस दिन अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया कहा था। यह उनके प्रशासनिक तंत्र पर प्रबल विश्वास की अभिव्यक्ति थी।
भारत को संगठित रखने में जिनकी महत्तम भूमिका
स्वतंत्रता के बाद, बिखरे राष्ट्र को जोड़कर रखने के लिए सशक्त सिविल सेवाओं की आवश्यकता थी। सरदार पटेल ने यह कार्य करने में क्षण भर विलंब नहीं किया। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में चयन के लिए पहली परीक्षा जुलाई 1947 को आयोजित की गई। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 01अक्टूबर, 1947 को प्रशासनिक तंत्र का भारतीय नामकरण किया। इस तरह ब्रिटिश राज की इंडियन सिविल सर्विस का नाम भारतीय प्रशासनिक सेवा हुआ। वहीं, इंडियन पुलिस का नाम परिवर्तित कर, भारतीय पुलिस सेवा रखा गया। लौह पुरुष मानते थे कि, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में स्थिर सरकार के लिए, कार्यकुशल, अनुशासित और संतुष्ट अधिकारियों की जरूरत है। यही अधिकारी राष्ट्र को अक्षुण्य रखने में सर्वाधिक भूमिका निभाते हैं। आइये अब, भारतीय प्रशासनिक सेवा की ओर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दृष्टि डालते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के साथ उनके संबंध को समझते हैं।
अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों पर केंद्र का अधिकार
प्रशासनिक व्यवस्था में एकरूपता सुनिश्चित करने का उद्देश्य लिए, संविधान में उचित प्रावधान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 312 के तहत भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा का गठन किया गया। अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951 के तहत, केंद्रीय सरकार, इस सेवा के लिए भर्ती परीक्षा,नियुक्ति और अन्य सभी बिंदुओं के लिए नियम बनाने का अधिकार रखती है। केंद्र का अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों पर अधिकार होता है। केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त ये अधिकारी, केंद्र-राज्य सरकार के साथ समन्वय करते हुए जनकल्याणकारी और प्रशासन संबंधी कार्यों का संचालन करते हैं। वर्तमान में अधिकारियों की भर्ती, संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के माध्यम से की जाती है।
क्या है भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग नियम
अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 के प्रभावी होने के बाद, वर्ष 1954 में IAS संवर्ग यानि कि कैडर के लिये नियम बनाया गया। इस नियम के अनुसार एक अधिकारी की, सम्बद्ध राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सहमति से ही अन्यत्र नियुक्ति की जा सकती है। लेकिन असहमति के मामले में केंद्र सरकार द्वारा निर्णय लिया जाता है और राज्य सरकार को, केंद्र सरकार के निर्णय को लागू करना अनिवार्य है। राष्ट्रीय हित के लिए केंद्र को अधिक अधिकार देने के इस नियम को वर्ष 1969 में जोड़ा गया।
मुख्य सचिव को लेकर यह है प्रावधान
अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं का सर्वोच्च पद सचिव का होता है। केंद्र में वे कैबिनेट सचिव कहलाते हैं, तो वहीं उन्हें राज्यों में मुख्य सचिव कहा जाता है। बीते दिनों केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल के बीच मुख्य सचिव को लेकर जो प्रकरण हम सबके सामने आया, उसमें केंद्र सरकार मुख्य सचिव पर कार्रवाई करने का अधिकार रखती है। राज्य के मुख्य सचिव ने केंद्र के आदेशानुसार तय समय सीमा के भीतर, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई। नियमानुसार यह मुख्य सचिव के आचरण के अनुकूल भी नहीं था। भारतीय संघ के एकात्मक चरित्र को, मजबूती प्रदान करने के लिए अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना की गई है। इसलिए मुख्य सचिव को जहां एक ओर अपने दायित्वों के प्रति सजग रहने की जरूरत हैं, वहीं राज्यों को भी इन मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप करने से बचना होगा।