मैसूर के यशस्वी शासक रहे कृष्ण राजा वाडियार (चतुर्थ) की जयंती आज, जानिए उनकी जीवन यात्रा के विषय में -
मैसूर के 24 वें शासक कृष्ण राजा वाडियार (चतुर्थ) की आज जयंती है। वे मैसूर के सर्वोत्तम शासकों में से एक माने जाते हैं। राज्य का विकास, प्रजा-सुख और कला-साहित्य के उन्नयन में उनका महत्तम योगदान रहा है। कृष्ण राजा वाडियार को महात्मा गांधी ने राजर्षि की उपाधि दी थी। राजर्षि का अर्थ है, वह राजा जो ऋषि सदृश हो। महाराजा कृष्ण राजा वाडियार के शासनकाल के दौरान मैसूर ने सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। उद्योग,कृषि,शिक्षा और कला क्षेत्र में हुई उन्नति से मैसूर राज्य समृद्ध हो उठा। उनके शासनकाल को मैसूर का स्वर्णयुग भी कहते हैं।
मैसूर में जन्मे महाराजा कृष्ण राजा वाडियार (चतुर्थ)
कृष्ण राजा वाडियार (चतुर्थ) का जन्म 4 जून वर्ष 1884 को मैसूर के राजकीय महल में हुआ था। वे महाराजा चमराजेंद्र वाडियार और महारानी वाणी विलास सन्निधन्ना के बड़े बेटे थे। कृष्णराजा वाडियार की प्रारंभिक शिक्षा लोकरंजन महल में हुई। उनके शिक्षक आचार्य पी. राघवेंद्र राव थे। उन्हें कन्नड़ संगीत कला,घुड़सवारी,राज्य-प्रशासन,न्याय व्यवस्था, संस्कृत के साथ-साथ पाश्चात्य दर्शन और संगीत की भी शिक्षा दी गई। सत्ता संभालने से पूर्व महाराज कृष्ण राजा वाडियार ने देश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया। देश की यथार्थ स्थिति समझने में इससे उन्हें मदद मिली।
यशस्वी-प्रजाहितैषी शासक थे कृष्ण राजा वाडियार
पिता की मृत्यु के बाद कृष्णा राजा वाडियार वर्ष 1895 में राजगद्दी पर बैठे। प्रारंभिक कुछ वर्ष तक उनकी माता ने ही राज-कार्य संभाला। शिक्षा पूरी होने के बाद महाराज कृष्णराजा वाडियार ने विधिवित वर्ष 1902 से राज-काज संभाल लिया। इसके तुरंत बाद उन्होंने मैसूर को विकसित राज्य बनाने की संकल्पना को, मूर्त रूप देना प्रारम्भ कर दिया। कृष्णा राजा वाडियार के शासनकाल में, मैसूर 20 वीं सदी के मुख्य प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में उभरकर आया। उनके ही शासनकाल के दौरान मैसूर पनबिजली उत्पन्न करने वाला पहला राज्य बना। राज्य की सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था करने में भी मैसूर अग्रणी रहा। इस तरह बुनियादी विकास के साथ-साथ, नवीन प्रौद्योगिकी को भी कृष्णराजा वाडियार ने भरपूर संरक्षण दिया। कृष्णराजा वाडियार ने विधानसभा का विस्तार किया और राज्य में कई नए कानून बनाए। उन्होंने वर्ष 1940 तक शासन किया। कृष्णराजा वाडियार के शासनकाल में मैसूर राज्य ने चतुर्दिक विकास के कीर्तिमान गढ़े।
कर्नाटक संगीत के उत्थान में महाराज वाडियार (चतुर्थ) का योगदान
कर्नाटक संगीत में महाराजा कृष्ण राजा वाडियार की गहरी रुचि थी। उन्होंने स्वयं संगीत का प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत दोनों के प्रति वे तीक्ष्ण दृष्टि रखते थे। उनके शासन काल में कर्नाटक संगीत में भी खूब उन्नति हुई। महाराज स्वयं संगीत वाद्य जैसे मृदंगम, नादस्वर,सितार,बांसुरी और वीणा वादन में प्रवीण थे। उनके दरबार में विभिन्न कलाकारों और संगीतकारों को उचित संरक्षण प्राप्त होता था। इनमें वासुदेवाचार्य, वीणा सुब्रमण्यम अय्यर, वीणा शिवरमैया, श्रीनिवास अयंगर चिक्का रामा राव शामिल हैं। कर्नाटक संगीत के साथ-साथ साहित्य और संस्कृत भाषा के प्रचार में भी उनका उल्लेखनीय योगदान है। महाराजा कृष्ण राजा वाडियार ( चतुर्थ) काशी हिंदू विश्व विद्यालय के प्रथम चांसलर थे। उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना भी की।
कताई का काम करने वाले महाराजा, वर्ष 1940 में हुआ निधन
महाराजा कृष्णराज वाडियार को महात्मा गया गांधी यूँ ही राजर्षि नहीं कहते थे। अतुलित ऐश्वर्य के स्वामी और प्रसिद्ध राजा होने के बावजूद महाराजा सरल थे। उनमें उदारता,दया और सत्य के प्रति आग्रह जैसे मानवीय गुण विद्यमान थे। प्रजा का हित उनके लिए सर्वोपरि था। महाराजा वाडियार ( चतुर्थ) के विषय में गांधी जी ने एक बार कहा था, “उन्होंने कताई का काम अपने हाथ में लिया है। वे कितने सहृदय एवं पवित्र हैं। मैं उन्हें बधाई देता हूँ। इससे सभी लोग प्रेरित होंगे। महाराज और उनकी प्रजा के लिए ये बेहद लाभकारी होगा।” गांधी जी दो-एक बार महाराजा के राजकीय अतिथि थे। गांधी जी मैसूर राज्य में जहां कहीं भी गए, उन्हें सामान्य जन से महाराजा के विषय में प्रशंसा ही सुनने को मिली। महाराजा कृष्ण राजा वाडियार को किंग जार्ज राज्याभिषेक पदक से भी सम्मानित किया गया था। मैसूर राज्य को उन्नति के शिखर पर आरूढ़ करने वाले, कृष्ण राजा वाडियार का निधन 3 अगस्त 1940 को बैंगलोर में हुआ।