मेरीकॉम से मीराबाई तक, जानें क्यों ओलंपिक में छाए रहते हैं मणिपुर के खिलाड़ी खबर को विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें
टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीतकर मीराबाई चानू ने इतिहास रचा है। वो वेटलिफ्टिंग में ओलंपिक पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं। उनसे पहले साल 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने सिडनी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। मीराबाई की इस जीत ने एक बार फिर भारतीय खेलों में पूर्वी राज्यों विशेषकर मणिपुर की ताकत का अहसास करा दिया। वेटलिफ्टिंग से लेकर बॉक्सिंग और फुटबॉल तक उत्तर पूर्वी भारत के इस राज्य ने देश को बीते कुछ सालों में बेहतरीन खिलाड़ी दिए हैं। करीब 30 लाख की आबादी वाले इस राज्य के खिलाड़ियों ने ओलंपिक में भारत के लिए अब तक दो मेडल जीते हैं। मीराबाई से पहले मुक्केबाजी में मैरीकॉम भी ओलंपिक पदक जीत चुकी हैं। उन्होंने 2012 के लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज जीता था।
जनसंख्या में पीछे, खिताबों में आगे
आबादी के लिहाज से मणिपुर देश के पहले 20 राज्यों में भी शामिल नहीं हैं, लेकिन आज उसकी पहचान स्पोर्ट्स हब के रूप में है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस छोटे से राज्य ने अब तक 13 ओलंपियन, 1 पद्मभूषण, 14 अर्जुन अवॉर्डी, 2 राजीव गांधी खेल रत्न जीतने वाले खिलाड़ी दिए हैं। वहीं, मणिपुर की झोली में एक ध्यानचंद और एक द्रोणाचार्य अवॉर्ड भी आया है।
छोटे से ही खिलाड़ी तय कर लेते हैं
मणिपुर के स्पोर्ट्स हब बनने की पीछे की जो सबसे बड़ी वजह है वो खिलाड़ियों की बचपन में ही पहचान कर लेना। मणिपुर में बच्चों को यह तय करने का मौका दिया जाता है कि वो कौन सा खेल चुनें। कम उम्र में ही अपने पसंद के खेल से जुड़ जाने की वजह से, जब वो अपनी किशोरावस्था में पहुंचते हैं, तब वो भले ही खेल के विशेषज्ञ न बनें, लेकिन बेहतर अनुशासन और जरूरी शारीरिक दम-खम वो हासिल कर लेते हैं। इसी वजह से दूसरे राज्यों के एथलीट्स के मुकाबले यहां के खिलाड़ी एक पेशेवर के रूप में आसानी से ढल जाते हैं।
मीराबाई की सफलता का राज है मणिपुर का वातावरण
वेटलिफ्टिंग में भी मीराबाई का ओलंपिक मेडल भी इसी कहानी का हिस्सा है। इम्फाल से 44 किलोमीटर दूर अपने गृहनगर नोंगपोक काकचिंग में रहने वाली 12 साल की मीराबाई बचपन में ही भारी भरकम लकड़ी के गठ्ठर उठाकर कई किलोमीटर पैदल चलती थीं। इसी दौरान पूर्व अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ्टर और कोच अनीता चानू की उन पर नजर पड़ी और मीराबाई की जिंदगी की दिशा ही बदल गई।
2008 के बीजिंग ओलंपिक को छोड़ दें, तो मणिपुर ने पांच ओलंपिक में चार अलग-अलग महिला वेटलिफ्टर्स को भेजा था। इस कोशिश को मीराबाई ने टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर अंजाम तक पहुंचाया। उनसे पहले कुंजारानी देवी और संजीता चानू भी इस खेल में मणिपुर का परचम बुलंद कर चुकी हैं।
मणिपुर में खेलों का क्लब सिस्टम है मजबूत
मणिपुर में खेलों का क्लब सिस्टम बहुत अच्छा है। छोटी उम्र में ही बच्चे बॉक्सिंग, फुटबॉल जैसे खेलों से जुड़ जाते हैं और फिर क्लब टूर्नामेंट में शिकरत करते हैं। स्पोर्ट्स क्लब संस्कृति वर्षों से मणिपुर का हिस्सा रही है। एक मणिपुरी बच्चे के लिए पढ़ाई के अलावा और एक विकल्प है, वह है खेलना। यही राज्य की संस्कृति है। इसलिए छोटा राज्य होने के बाद भी मणिपुर की स्पोर्ट्स हब के रूप में पहचान बुलंद हुई है।
मणिपुर का खेल बजट है अधिक
नए खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के लिए मणिपुर की सरकार खेलों के लिए भारी भरकम बजट आवंटित करने पर जोर देती है। वहीं साल में एक दिन प्लेयर्स डे भी मनाया जाता है। 2019-20 में मणिपुर ने राज्य के खेल बजट को बढ़ाकर 100 करोड़ रुपए कर दिया था। इसके अलावा खेलो इंडिया नेशनल प्रोग्राम के तहत भी राज्य के 16 जिलों में 16 स्पोर्ट्स सेंटर्स बनाने का काम भी चल रहा है।
मणिपुर से पांच खिलाड़ी टोक्यो गए
टोक्यो ओलंपिक में भी उत्तर पूर्वी राज्यों में से मणिपुर के सबसे ज्यादा खिलाड़ी गए हैं। इसमें मीराबाई चानू (वेटलिफ्टिंग), मैरीकॉम (मुक्केबाजी), सुशीला देवी (जूडो), निलकांत शर्मा (पुरुष हॉकी), सुशीला चानू और पुखरामबम (महिला हॉकी) शामिल हैं। फुटबॉल, बॉक्सिंग और वेटलिफ्टिंग में मणिपुर की पहचान बुलंद करने वाले खिलाड़ियों की लिस्ट लंबी है, लेकिन कुछ चुनिंदा खिलाड़ी ऐसे रहे हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के साथ राज्य का भी नाम रोशन किया है। नीचे ऐसे ही महान खिलाड़ियों की चर्चा की गई है –
कुंजारानी देवी: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैरीकॉम और मीराबाई चानू से पहले कुंजारानी देवी ने दुनिया भर में मणिपुर की पहचान बनाई है। उन्होंने वेटलिफ्टिंग की अलग-अलग वर्ल्ड चैम्पियनशिप में 7 सिल्वर मेडल जीते और उन्हें देश का सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न भी मिला था।
डिंको सिंह: भारत में बॉक्सिंग क्रांति का श्रेय अगर किसी एक मुक्केबाज को जाता है तो वो डिंको सिंह हैं। उनका हाल ही में कैंसर से निधन हो गया था। डिंको भी मणिपुर से ही आते थे। उन्होंने 1998 के बैंकॉक एशियन गेम्स में भारत के लिए गोल्ड जीता था। इसके बाद भी देश में मुक्केबाजी की दिशा बदली।
सरिता देवी: महिला मुक्केबाजी में सरिता देवी भी किसी पहचान की मोहताज नहीं है। उन्होंने 2005 और 2008 की विश्व चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता। 2014 में कोरिया के इंचियोन एशियाई खेलों में सेमीफाइनल में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद भी मैच का निर्णय सरिता के पक्ष में नहीं दिया गया था। विरोध स्वरूप पदक-वितरण समारोह में उन्होंने कांस्य पदक गले में पहनने से मना कर दिया था।
गंगोम बाला देवी: बाला देवी को भारतीय फुटबॉल की ‘दुर्गा’ कहा जाता है। वो भारत की महानतम महिला फुटबॉल खिलाड़ी हैं। वो पहली भारतीय महिला फुटबॉलर हैं, जिसने विदेश की किसी पेशेवर टीम के साथ खेलने के लिए अनुबंध किया था। उन्हें पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है। वो दो बार साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड जीत चुकी हैं।
मैरीकॉम: मैरीकॉम को मणिपुर का सबसे बड़ा खिलाड़ी कहा जाए तो गलत नहीं होगा, वो राज्य के लिए पहला ओलंपिक मेडल जीतने वाली खिलाड़ी हैं। उन्होंने 2012 के लंदन ओलंपिक में यह कारनामा किया था। वो 6 वर्ल्ड और पांच एशियन चैम्पियनशिप जीत चुकी हैं। वो टोक्यो ओलंपिक में भी हिस्सा ले रही हैं।