भूमिगत खदानों, अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में लोगों की जान बचाएगा नैनोरोड आधारित ऑक्सीजन सेंसर पूरी खबर पढ़ने के लिए लिंक पर जाएं
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मानव जाति के लिए ऑक्सीजन ‘प्राणवायु’ है तथा पृथ्वी पर जीवन संभव होने के प्रमुख कारणों में से एक है। हालांकि ऑक्सीजन की सांद्रता विभिन्न प्रदेशों में भौगोलिक पृष्ठभूमि के आधार पर अलग-अलग होती हैं। हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नैनोरोड्स आधारित ऑक्सीजन सेंसर विकसित किया है, जो भूमिगतखदानों/ खानों, अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों जैसे हवाई जहाज और अनुसंधान प्रयोगशालाओं में ऑक्सीजन गैस की सांद्रता का पता लगा सकता है।
कमरे के तापमान पर करता है काम
यह अल्ट्रावायलेट (यूवी) विकिरण की सहायता से सामान्य तापमान पर काम करता है। बहुत कम पीपीएम-स्तर में ऑक्सीजन सांद्रता की निगरानी बहुत महत्वपूर्ण है। कमरे के तापमान पर काम करने वाला यह एक तेज और प्रभावी ऑक्सीजन सेंसर है, जो भूमिगत खदानों, उच्च ऊंचाई जैसी जगहों पर लोगों की जान बचा सकता है।
इसके सुपीरियर सेंसिंग प्रॉपर्टी के पीछे हैं कई कारण
यह सेंसर बहुत ही संवेदनशील है और इसके सुपीरियर सेंसिंग प्रॉपर्टी का कारण बढ़ी हुई विद्युत चालकता, एक इलेक्ट्रॉन और एक धनात्मक छिद्र का संयोजन से बना एक्साइटन और यूवी विकिरण द्वारा सेंसर सतह से सतह से बाहर निकलने वाले पानी के अणुओं का अवशोषण बताया जा रहा है I इससे ऑक्सीजन अणुओं की बढ़ी हुई मात्रा एवं स्लैंटेड नैनोरोड्स एरे में मौजूद टाइटेनियम डाइऑक्साइड में निहित क्रोमियम के परस्पर सम्पर्क में आसानी होती है I
सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज के वैज्ञानिकों ने बनाया यह सेंसर
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाले एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान, सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों ने यह सेंसर विकसित किया है। वैज्ञानिक डॉ. एस. अंगप्पन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने मेटल ऑक्साइड सेमीकंडक्टर (एमओएस) का निर्माण किया है। डॉ. एस. अंगप्पन के अलावा इस टीम में हिरन ज्योतिलाल, गौरव शुक्ला, सुनील वालिया और भरत एसपी शामिल थे। उन्होंने इसके लिए टाइटेनियम ऑक्साइड का उपयोग किया I यह सेंसर अच्छी स्थिरता के साथ 25 पीपीएम से 10 लाख पीपीएम तक की ऑक्सीजन सांद्रता में काम कर सकता है।
कम बिजली खपत में देता है सटीक परिणाम
इस टीम ने साबित किया कि यह सेंसर कम बिजली की खपत के साथ सबसे सटीक परिणाम देता है और इसके लिए इसे किसी विशेष तापमान की जरुरत भी नहीं होती। तैयार किए गए सेंसरों ने 1000 पीपीएम पर क्रमशः लगभग 3 सेकंड और 10 सेकंड की प्रतिक्रिया दिखाई है। यह अनुसंधान प्रयोगशालाओं में किए जा रहे कई प्रयोगों की सटीकता सुनिश्चित कर सकता है।
इस तकनीक का इस्तेमाल कर एक इलेक्ट्रॉनिक नाक बनाने की चल रही है तैयारी
इसके अलावा सीईएनएस टीम एक उपयुक्त इलेक्ट्रॉनिक नाक (नोज) बनाने के लिए सेंसर और उसकी इलेक्ट्रॉनिक्स इंटरफेसिंग को अन्य गैस सेंसर के साथ मिलाकर और छोटे स्वरूप में विकसित करने पर काम कर रही है। इसके बाद लोग व्यक्तिगत तौर पर इसका उपयोग कर पाएंगे।