भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति बी.डी. जत्ती की पुण्यतिथि आज,जानिए उनकी जीवन यात्रा के संबंध में -
भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति बी.डी. जत्ती की आज पुण्यतिथि है। वे भारत के पांचवें उपराष्ट्रपति थे। उनका पूरा नाम बसप्पा दानप्पा जत्ती था। बी.डी. जत्ती का नाम उन चुनिंदा राजनेताओं में शामिल है, जिन्होंने विधायक से लेकर उपराष्ट्रपति और फिर कार्यवाहक राष्ट्रपति तक का सफर तय किया। देश के विभिन्न संवैधानिक पदों को सुशोभित करने वाले ऐसे राजनेता कम ही होते हैं। आइये, बी.डी. जत्ती की जीवन यात्रा के विषय में जानते हैं।
कर्नाटक में हुआ था जन्म,प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई पूरी
बसप्पा दानप्पा जत्ती (बी.डी.जत्ती) का जन्म, 10 सितम्बर 1912 को, कर्नाटक के बीजापुर जिले के सवालगी ग्राम में हुआ था। महाराष्ट्र की सीमा के निकट होने के कारण,गांव के अधिकांश लोग कन्नड़ की अपेक्षा मराठी बोलते थे। गांव के ही विद्यालय में बी.डी. जत्ती की प्रारंभिक शिक्षा पूरी हुई। दूसरी कक्षा के बाद इन्होंने लड़ाकों के स्कूल में प्रवेश लिया। चौथी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, इन्हें ए. वी. स्कूल में भर्ती कराया गया और आगे की शिक्षा पूरी हुई। ए. वी. स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद वे बसप्पा सिद्धेश्वर हाई स्कूल बीजापुर गए, ताकि मैट्रिक स्तर की परीक्षा दे सकें। 1929 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। वह खेलकूद में भी रुचि रखते थे। उन्हें तैराकी के अलावा कुछ भारतीय खेलों में भी रुचि थी। खो-खो, मलखम्भ, कुश्ती का भी उन्हें शौक था। उन्होंने लगातार दो वर्ष तक लाइट वेट वाली कुश्ती चैम्पियनशिप भी जीती थी।
ऐसा रहा बी.डी. जत्ती का राजनीतिक सफर
बी.डी. जत्ती ने अपने राजनीतिक जीवन का प्रारम्भ नगरीय निकाय चुनावों से किया था। नगर निगम चुनाव जीतने के बाद, वे आगे ही बढ़ते गए। वर्ष 1940 में उन्होंने नगर निगम चुनाव जीता। इसके कुछ समय बाद जमखंडी से वे विधान सभा सदस्य चुने गए। इसके बाद वर्ष 1952 के आम चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की। स्वास्थ्य और श्रम विभाग में उपमंत्री का दायित्व उन्हें प्राप्त हुआ। वर्ष 1968 में, वे पुडुचेरी के राज्यपाल बने और यही उनके राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण का वर्ष था। वर्ष 1973 में वे उड़ीसा के राज्यपाल भी बने। इसके बाद आया साल 1974, जब वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के उपराष्ट्रपति बने। वर्ष 1980 तक उन्होंने इस दायित्व का निर्वहन किया। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के बाद, उन्होंने कुछ समय तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के दायित्व का भी निर्वहन किया।
बसव समिति के संस्थापक बी.डी. जत्ती
बारहवीं सदी में दक्षिण भारत में एक महान दार्शनिक संत बसवेश्वर हुए। बसव हिंदू वीरशैव (लिंगायत) मत के पवित्र ग्रंथों में से एक, बसव पुराण के रचयिता हैं। उन्हें क्रांतिकारी संत भी कहा जाता है। संत बसवेश्वर ने 12वीं सदी में समाज के शोषित वर्ग को मुख्यधारा में लाने के लिए कई काम किए। उनका कहना था कि लोगों को उनके जन्म के अनुसार नहीं बल्कि काम के आधार पर वर्गीकृत करना चाहिए। संत बसव के विचारों और कृतित्व से पूर्व उपराष्ट्रपति प्रेरित होते थे। इसीलिए उन्होंने बसव समिति की स्थापना की। यह समिति, संत बसवेश्वर के कार्यों और विचारों से जनमानस को परिचित करवाती रही है। बी.डी. जत्ती स्वयं बेहद नम्र और धार्मिक स्वभाव के थे। नब्बे वर्ष की उम्र में 7 जून 2002 को बैंगलोर में उनका निधन हुआ।
उपराष्ट्रपति के पद से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
बी.डी. जत्ती की पुण्यतिथि पर हमने उनकी जीवन यात्रा की ओर दृष्टि डाली। वे उपराष्ट्रपति थे। अब हम समझते हैं कि,उपराष्ट्रपति के पद का संवैधानिक महत्व क्या है। उपराष्ट्रपति का पद भारत के संविधान की अनूठी विशेषता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 63 के अनुसार, भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 और 89 के तहत यह वर्णित है कि, भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा। इसके अतिरिक्त वे अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं कर सकते। उपराष्ट्रपति का चुनाव
एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होता है। उपराष्ट्रपति के पद के लिए किसी व्यक्ति को निर्वाचित किए जाने हेतु, मतदाता में संसद के दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति होने का पात्र तभी होगा, यदि वह- भारत का नागरिक है, पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है और राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है। भारत का निर्वाचन आयोग, उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचन कराता है। राष्ट्रपति चुनाव होने के 60 दिन के भीतर ही उपराष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है।