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किसानों की आमदनी दोगुना करने के लिए सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है। किसानों के खाते में सीधे पैसे पहुंचाने के साथ-साथ उनके फसलों को उचित बाजार मुहैया कराना भी सरकार की बड़ी प्राथमिकता है। किसानों की फसलों का उचित दाम दिलाने के लिए फसलों का प्रसंस्करण यानि प्रोसेसिंग एक बड़े कारोबारी संभावना के तौर पर उभरी है। प्रोसेसिंग के जरिए न केवल खेती बाड़ी को इंडस्ट्री के साथ जोड़ा जा सकता है, बल्कि इसके निर्यात को खोलने पर आमदनी और रोजगार में भी बढ़ोतरी होती है। इसी के तहत बेंगलुरु से प्रसंस्कृत और प्रमाणित जैविक कटहल जर्मनी को निर्यात किया गया है।
10.20 मीट्रिक टन कटहल जर्मनी को की गई निर्यात
जैविक उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए, समुद्री मार्ग से मंगलवार को बेंगलुरु से प्रमाणित ग्लूटेन मुक्त जैविक कटहल पाउडर और पैक्ड कटहल क्यूब्स के 10.20 मीट्रिक टन की मात्रा की एक खेप जर्मनी को निर्यात की गई। कटहल को एपीई जैकफ्रूट डीए के सहयोग से चलाए जा रहे, पैक हाउस से प्रसंस्कृत किया गया है। बता दें कि एपीई जैकफ्रूट फलादा एग्रो रिसर्च फाउंडेशन (पीएआरएफ ), बेंगलुरु के स्वामित्व वाली कंपनी है।
पीएआरफ इन वस्तुओं का करता है उत्पाद
एपीडा से पंजीकृत पीएआरफ 1500 किसानों के समूह का प्रतिनिधित्व करता है, जो कि करीब 12,000 एकड़ खेत का स्वामित्व रखते हैं। ये किसान औषधीय और सुगंधित जड़ी-बूटियां, नारियल, कटहल, आम की प्यूरी के उत्पाद, मसाले और कॉफी का उत्पादन करते हैं।
पीएआरएफ अपने छोटे किसान समूहों को राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी), यूरोपीय संघ, राष्ट्रीय जैविक कार्यक्रम (संयुक्त राज्य अमेरिका) मानकों के अनुसार प्रमाणन प्रक्रिया की सुविधा प्रदान करता है। पीएआरएफ की प्रसंस्करण इकाई को एपीडा द्वारा इसके मान्यता प्राप्त जैविक प्रमाणन के तहत प्रमाणित किया गया है।
लंदन में 1.2 मीट्रिक टन कटहल का हुआ निर्यात
सिर्फ बेंगलुरु से ही नहीं बल्कि हाल ही में, त्रिपुरा से लंदन में 1.2 मीट्रिक टन (एमटी) ताजे कटहल का निर्यात किया गया था। कटहल त्रिपुरा स्थित कृषि संयोग एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड से भेजे गए थे। खेप को ‘साल्ट रेंज सप्लाई चेन सॉल्यूशन लिमिटेड’ की एपीडा सहायता प्राप्त पैक-हाउस सुविधा में पैक किया गया था और कीगा एक्जिम प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्यात किया गया था। यह यूरोपीय संघ को निर्यात के लिए पहला एपीडा सहायता प्राप्त पैक हाउस है। इसे मई 2021 में मंजूरी दी गई थी।
क्या है एनपीओपी
बता दें कि एनपीओपी के तहत, जैविक उत्पादों को पर्यावरण और सामाजिक रूप से जिम्मेदार दृष्टिकोण के साथ रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल किए बिना कृषि विधियों के तहत उगाया जाता है। खेती की यह विधि शुरुआती चरण से अपनाई जाती है। इसके तहत मिट्टी की उर्वरता और पुर्नउत्पादन क्षमता, फसल की पोषकता और मिट्टी के प्रबंधन को बनाए रखते हुए, जीवन शक्ति से भरपूर पौष्टिक भोजन का उत्पादन किया जाता है, जिसमें प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। एपीडा वर्तमान में एनपीओपी को लागू कर रहा है, जिसमें निकायों का प्रमाणन, जैविक उत्पादन के मानक, जैविक खेती और विपणन को बढ़ावा देना आदि शामिल है।
भारत ने 3.49 मिलियन टन प्रमाणित जैविक उत्पादन किया
भारत ने 2020-21 में लगभग 3.49 मिलियन टन प्रमाणित जैविक उत्पादों का उत्पादन किया है। जिसमें सभी प्रकार के खाद्य उत्पाद जैसे तिलहन, गन्ना, अनाज, बाजरा, कपास, दालें, सुगंधित और औषधीय पौधे, चाय, कॉफी, फल, मसाले, सूखे मेवे, सब्जियां, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ आदि शामिल हैं।
जैविक खेती करने वाले राज्य
मध्य प्रदेश में जैविक प्रमाणीकरण के तहत सबसे बड़े क्षेत्र में खेती की जाती है। इसके बाद राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, ओडिशा, सिक्किम और उत्तर प्रदेश का स्थान है। साल 2020-21 में जैविक उत्पादों के निर्यात की कुल मात्रा 8.88 लाख मीट्रिक टन थी और जिसके जरिए 7078 करोड़ रुपये (104 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का निर्यात किया गया था।