जापान की धरती से जीतकर लौटे भारत के सात समुराई, टोक्यो ओलंपिक में नहीं झुकने दिया सिर अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें...
इस बार जापान की धरती पर भारत के सात समुराई ओलंपिक खेलों में विजय हासिल कर वतन वापस लौटे हैं। इन्होंने दुनिया के खेलों के सबसे बड़े मंच पर अच्छों-अच्छों को धूल चटाई, तब जाकर यह कामयाबी हासिल हुई। सिर्फ इतना ही नहीं, इनके बलबूते भारत बीते चार दशकों बाद ओलंपिक की पदक तालिका में अपना रैंक भी सुधार पाया है। यही कारण ही कि आने वाले दिनों में टोक्यो ओलंपिक के सात भारतीय समुराईयों की गाथा युगों-युगों तक याद रखी जाएगी।
भारत का चार दशकों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। इस बार भारत 48 वें स्थान पर रहा। यह चार दशकों में इसकी सर्वोच्च रैंकिंग है। यदि पदकों की कुल संख्या के हिसाब से देखा जाए तो भारत वास्तव में 33वें स्थान पर होता। हालांकि, रैंकिंग मुख्य रूप से जीते गए स्वर्ण पदकों के आधार पर की जाती है। भारत वर्ष 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान 51वें स्थान पर था, जब भारत ने अभिनव बिंद्रा के स्वर्ण सहित तीन पदक जीते थे।
लेकिन हिंदुस्तान ने जिस युग में हॉकी के बलबूते लगातार गोल्ड मेडल जीते थे, उस युग में भारत का स्थान काफी ऊंचा रहा है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उस समय के बाद से अस्तित्व में आए दर्जनों देशों और खेलों की संख्या में भी काफी विस्तार हुआ है। इसलिए इन कारणों को देखते हुए भी उस समय की तुलना वास्तव में नहीं की जा सकती है। उदाहरण के बतौर मास्को में भारत 23वें स्थान पर रहा था जब हॉकी में उस केवल एक स्वर्ण पदक मिला था। जबकि टोक्यो में उसी की पुनरावृत्ति में भारत को संयुक्त 63वें स्थान पर रखा, जबकि दोनों युग कितने अलग-अलग रहे हैं। लेकिन इस बार टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारत को पदक तालिका में अपनी रैंक को सुधारने में बड़ी सफलता मिली है। जिनके बलबूते यह संभव हो पाया है ऐसे में उन महान खिलाड़ियों से कौन परिचित नहीं होना चाहेगा…
जापान की धरती पर गए थे भारत के ये 7 समुराई
8 अगस्त रविवार के दिन टोक्यो ओलंपिक का समापन हुआ। 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य पदक हासिल कर भारत ने टोक्यो ओलंपिक-2020 में अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया, जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक में भारत का सिर नहीं झुकने दिया। इनमें पुरुष और महिलाएं दोनों ही शामिल हैं। ओलंपिक की इनकी गौरव गाथा सुनने पर आप भी गौरवान्वित महसूस करेंगे। जी हां, जब देश एक कोरोना महामारी के अंधेरे दौर से झूंझ रहा था तब भी ये खिलाड़ी मेहनत में जुटे हुए थे। इनका जोश-ओ-जुनून उस वक्त भी फीका नहीं पड़ा जब टोक्यो ओलंपिक पर एक साल के व्यवधान के बावजूद साल 2021 में भी खतरे के बादल मंडराने लगे। ये खिलाड़ी जी तोड़ मेहनत में जुटे रहे जिसका फल उन्हें अंत में मिला।
गोल्ड मेडल विनर
इस बार टोक्यो ओलंपिक में ‘नीरज चोपड़ा’ बेहतर रिकॉर्ड बनाने वाले बड़ा नाम साबित हुए। हरियाणा के पानीपत जिले के 23 वर्षीय खिलाड़ी ने पल भर में पूरे देश को रोमांचित कर दिया। जैवलिन थ्रो खेल में उनके गोल्डन थ्रो ने जीत की खुशी से पूरे देश को झुमा दिया। इस पल में राष्ट्रगान सुनकर लाखों लोग भावुक हो गए। नीरज चोपड़ा की सफलता की कहानी के पीछे उनकी कड़ी मेहनत रही, जिसमें उन्होंने अपना वजन कम करने की जी तोड़ कोशिश करते हुए इस खेल में सफलता का पीछा किया और आखिरकार उन्होंने दोनों को पाने में सफलता हासिल की।
सिल्वर मेडल विनर
भारोत्तोलक (वेटलिफ्टर) साइखोम मीराबाई चानू से 2016 के रियो ओलंपिक में बहुत उम्मीदें थीं। लेकिन उस दौरान वह सफल नहीं हो पाई। उस दौरान चानू एक भी क्लीन एंड जर्क लिफ्ट करने में सफल नहीं रही, लेकिन टोक्यो 2020 में सिल्वर मेडल जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। मीराबाई ने 49 किलोग्राम वर्ग में पदक अपने नाम किया।
वहीं दुनिया के चौथे नंबर के पहलवान 23 साल के रवि कुमार दहिया ने अपने पहले ही ओलंपिक में रजत जीतकर सभी को चौंका दिया। हालांकि वह 57 किग्रा भारवर्ग के फाइनल में देश के सबसे युवा ओलंपिक चैंपियन बनने से चूक गए। रूसी ओलंपिक समिति (आईओसी) के मौजूदा विश्व चैंपियन जावुर युवुगेव ने उन्हें 7-4 से हरा दिया। रवि कुमार दहिया सोनीपत के रहने वाले हैं। दहिया ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ा संघर्ष किया।
ब्रॉन्ज मेडल विनर
टोक्यो ओलंपिक में विजयी भारतीय हॉकी पुरुष टीम का कोई भी खिलाड़ी तब पैदा नहीं हुआ था, जब भारत ने आखिरी बार हॉकी में ओलंपिक पदक जीता था। कप्तान मनप्रीत सिंह की अगुवाई में टीम में पोडियम पर चढ़ने का जज्बा नजर आया और टीम के प्रयासों से यह संभव भी हुआ। टीम की हार ने उन्हें एक के बाद एक उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप टीम कांस्य पदक के लिए प्लेऑफ में पहुंची। जर्मनी के खिलाफ खेला गया वह मैच हमेशा के लिए यादगार बन गया जब भारत ने 5-4 से जीत हासिल की। इससे पहले ओलंपिक में भारत 1980 में आखिरी बार हॉकी में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहा था।
वहीं बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु टोक्यो ओलंपिक के शुरुआती दौर में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से कमतर नजर आईं, लेकिन बाद में पुसरला वेंकट सिंधु ने टूर्नामेंट के चरम पर पहुंचने तक सही नोटों को हिट कर दिखाया। सिंधु ने कांस्य पदक के प्लेऑफ में चीनी ही बिंग जिओ को 21-13, 21-15 से हराकर अपनी भारत की झोली में दूसरा ओलंपिक पदक जोड़ा।
मुक्केबाजी में ऐसी ही सफलता लवलीना बोरगोहेन के हाथ लगी। हालांकि कोविड ने उनकी तैयारी को खासा प्रभावित किया था, लेकिन असम की लंबी मुक्केबाज ने स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश की। लवलीना ने फिट रहने के लिए अनेकों जतन किए। लवलीना ने एलपीजी सिलेंडर उठाया, फिट रहने के लिए धान के खेतों में काम किया। टोक्यो में, लवलीना ने दुनिया को दिखाया कि वह निडर होकर बॉक्सिंग कर सकती है। पांच फीट, नौ इंच लंबी इस महिला खिलाड़ी की पहुंच इतनी लंबी हो गई कि अद्भुत पदक की एक कहानी तैयार कर गई।
उधर बजरंग पुनिया कुश्ती के दांव पेंच में कांस्य पदक का दांव जुटाने में कामयाब रहे। घुटने में आई चोट के बावजूद उन्होंने अपने विरोधियों को जबरदस्त टक्कर दी। हरियाणा के झज्जर जिले के 27 वर्षीय इस खिलाड़ी ने कजाकिस्तान के दौलेट नियाजबेकोव के खिलाफ शानदार खेल का प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक जीता। स्कोरलाइन में बजरंग ने 8-0 से भारत की जीत की कहानी लिखी।