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पांच जून को पूरी दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया है। पर्यावरण को संतुलित और पेड़ लगाने को लेकर एक दूसरे को जागरूक करने के लिए कई तरह के वर्चुअली माध्यम से कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, लेकिन हम सब के बीच कई ऐसे लोग और संस्थाएं होती हैं, जो बिना किसी के नजर में आए, अनवरत पर्यावरण संतुलन की दिशा में कार्य कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है, गुजरात में ग्रीन हीरो ऑफ इंडिया’ डॉ. आरके नायर ने।
दुनिया के सबसे बड़े और तटीय जंगल का निर्माण पूरा
गुजरात के वलसाड जिले के उमरगाम तहसील के नारगोल में पर्यावरण की दिशा में एक अनोखी मुहिम देखने को मिली है, जहां जापानी ‘मियावाकी’ पद्धति का उपयोग करके दुनिया के सबसे बड़े और तटीय जंगल का निर्माण पूरा किया गया। यहां मात्र 27 दिनों में 1 लाख 20 हजार से ज्यादा पेड़ लगाए गए हैंं। नारगोल में मालजंगल बीच से लगा हुआ, यह जंगल विदेशी पक्षियों के साथ ही पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होगा।
नारगोल के सरपंच कांतिलाल कोतवाल की दूरदर्शिता के कारण, जहां खारे पानी से विदेशी बलूत के अलावा एक भी चिंगारी नहीं उग रही थी। वहीं इस परियोजना के तहत मीठे पानी के भंडारण तालाब स्थापित किए गए। पर्याप्त जल प्रबंधन और 60 से अधिक प्रकार के पौधरोपण करके एक अनूठी मिसाल पेश की गई है।
‘ग्रीन हीरो ऑफ इंडिया’
इस काम को सफल बनाने के लिए एनवायरो और फॉरेस्ट क्रिएटर फाउंडेशन मुंबई के संस्थापक दीपन जैन और सह-संस्थापक डॉ. आर.के. नायर ने संघर्ष किया है। डॉ. नायर ने अपने जीवन में 58 से अधिक जंगलों का निर्माण किया है। इसी वजह से उन्हें “ग्रीन हीरो ऑफ इंडिया” के रूप में लोकप्रिय हो गए हैं। अब डॉ. नायर के नेतृत्व में परियोजना नारगोल गांव में बनाई गई, जो देश-विदेश में आने वाले पर्यटकों के लिए एक नया स्थल बनने के लिए तैयार है। नरगोल गांव में मालजंगल समुद्र तट हर साल विदेशी पक्षियों की कई प्रजातियों का घर है। इस जंगल के बनने के साथ, मालजंगल बीच पर पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियों की चहचहाहट सुनी जा सकती है।
विदेशी पक्षियों की पसंद की जगह
नारगोल में मालजंगल बीच से लगा हुआ, यह जंगल विदेशी पक्षियों के साथ ही पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होगा। यह जगह पहले ही विदेशी पक्षियों की पसंद की जगह साबित हो चुकी है। अब विदेशी पक्षियों की संख्या दोगुनी होने के दिन दूर नहीं है।
क्या है मियावाकी पद्धति?
मियावाकी जंगल की खोज 40 साल पहले जापानी जंगलस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी ने की थी। इसलिए इसे मियावाकी जंगल के नाम से जाना जाता है। इस विधि से बने जंगल में बहुत करीब पौधे लगाए जाते हैं। इस विधि में लगाए गए पौधे बहुत तेजी से बढ़ते हैं। सामान्य पेड़ 300 साल में बढ़ते हैं, लेकिन इस विधि के कारण 30 से 35 साल में बढ़ते हैं। जितनी कम जगह होगी, उतने ही ज्यादा पेड़ उगेंगे और उतनी ही तेजी से उगेंगे। इस जंगल में औषधि के विभिन्न वृक्षों के साथ-साथ कुल 60 प्रकार के पेड़ लगाए जा रहे हैं।
केरल के डॉ. नायर ने गुजरात को बनाई कर्मभूमि
डॉ. राधा कृष्ण नायर मूल रूप से दक्षिण भारत के केरल राज्य के रहने वाले हैं, लेकिन पिछले 25 सालों से उन्होंने गुजरात के उमरगाम को कर्मभूमि बना लिया है। मूल कृषक परिवार के डॉ. नायर ने अपने करियर की शुरुआत रेडीमेड गारमेंट उद्योग से की थी और औद्योगिक क्षेत्र में भी अपना नाम बनाया है।
प्रकृति प्रेमी डॉ. आर.के. नायर 12 साल पहले एनवायरो और फॉरेस्ट क्रिएटर फाउंडेशन से जुड़े हैं और तब से उन्होंने हरित क्रांति लाने के लिए 12.5 लाख पेड़ लगाए हैं। उन्हें कई मंचों पर विभिन्न संगठनों के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया है। पूरे देश में पुलवामा में शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए उनके द्वारा 40 शहीदों के नाम पर जंगल का निर्माण किया जा रहा है। झारखंड, मुंबई, गुजरात के कच्छ और उमरगाम तहेसिल के कालय गांव के साथ, उन्होंने अब तक 58 जंगल बनाए हैं।
परियोजना को देखने के लिए पहुंच रहे लोग
वहीं नारगोल गांव पंचायत के सरपंच कांतिभाई कोतवाल ने कहा, ”हमें गर्व है कि नारगोल गांव पंचायत की जमीन पर ऐसी परियोजना का निर्माण किया गया है.” इस परियोजना को देखने के लिए बहुत से लोग आ रहे हैं। इस परियोजना के कारण आने वाले दिनों में नारगोल गांव मालजंगल बीच एक पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है। यह स्थान आने वाले दिनों में एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल साबित होगा। हम प्रकृति प्रेमी डॉ. आर.के. नायर के विशेष आभारी हैं।
प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए जंगल बनेगा सुरक्षा दीवार
एनवायरो और फॉरेस्ट क्रिएटर फाउंडेशन मुंबई के सह-संस्थापक डॉ. आरके नायर ने कहा कि नारगोल गांव प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर जन्नत का टुकड़ा है। इस गांव में इस काम को करने का मौका मिलना बड़ी बात है। परियोजना के प्रथम चरण के तहत वृक्षारोपण का कार्य पूरा कर लिया गया है। पेड़ों को अब तीन वर्ष तक संरक्षित कर जंगल पंचायत को सौंपा जाएगा। इस परियोजना से जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा। इस क्षेत्र में हजारों पक्षी देखने को मिलेंगे, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए यह जंगल सुरक्षा दीवार का काम करने में कारगर होगी।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)