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कोरोना काल में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ ताजा फल-सब्जियों के साथ ही प्रोटीन के लिए दूध, दही और दाल के सेवन की भी सलाह दे रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सोयाबीन भी प्रोटीन का उत्तम स्रोत होता है। जी हां, शाकाहारी मनुष्यों के लिए मांसाहारी लोगों के भोजन के समान ही सोयाबीन शक्ति अर्जित कर प्रोटीन के रूप में देता है। सोयाबीन के मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा हैं। सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ‘ग्लाइसीन मेक्स’ है।
वैसे विश्व की 60 प्रतिशत सोयाबीन अमेरिका में पैदा होती है। उसके अलावा भारत में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन होता है, जहां इसके लिए रिसर्च सेंटर इंदौर में बनाया गया है। आइए जानते हैं, सोयाबीन के फायदे और कैसे की जाती है इसकी खेती…
सोयाबीन की खासियत
रिलायंस फाउंडेशन इंर्फोमेशन सर्विस के इंडो ब्रिटिश फर्टिलाइजर एजुकेशन प्रोजेक्ट में लम्बे समय तक काम कर चुके कृषि वैज्ञानिक नरेन्द्र कुमार तांबे कहते हैं कि मध्य प्रदेश में मालवा के किसानों के लिए खासतौर से सोयाबीन की फसल करना लाभ में रहना है। वे कहते हैं कि सोयाबीन की विशेषता यह है कि इसमें अधिक प्रोटीन होता है। सोयाबीन में 38-40 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 12 प्रतिशत नमी तथा पांच प्रतिशत भस्म पाई जाती है।
किसानों के लिए पीला सोना है सोयाबीन
मध्य प्रदेश के किसान सोयाबीन को पीला सोना कहते हैं। प्रदेश के मालवा क्षेत्र में सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग 23/25 लाख हेक्टेयर का है। किसानों का मानना है कि सोयाबीन की खेती से निश्चित रूप से लाभ मिलता है, यदि बीज के अंकुरण के बाद तुरंत ही पदगलन यानि कि फफूंद से इसकी रक्षा सही समय पर कीटनाशक का उपयोग कर हो जाए, तो इसमें नुकसान की गुंजाइश कम होती है। खरीफ की इस महत्वपूर्ण फसल को लेकर रिलायंस फाउंडेशन इंर्फोमेशन सर्विस और मध्य प्रदेश कृषि विभाग की ओर से आवश्यक सलाह एवं जानकारी दी गई है।
बीज की तैयारी
प्रदेश के किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग का कहना है कि किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि उनके पास जो सोयाबीन है, उसको आगामी मौसम में उगाने के लिए बीज के रूप में तैयार करने का प्रयास करें। इसके लिए सोयाबीन छलनी से छानकर एक समान आकार के दाने प्राप्त करने तथा हाथों से बिनाई कर झिर्री युक्त खराब दाने अलग कर साफ करें। तब ही शेष दानों का उपयोग बीज के रूप में कर सकते हैं।
बुआई के समय रखें ध्यान
कृषि वैज्ञानिक नरेन्द्र कुमार तांबे बताते हैं कि समान आकार के स्वस्थ दानों का बीज के रूप में उपयोग करें, जिसमें कि बीज दर छोटा दाना 60-65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, मध्यम दाना 70-75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं मोटा दाना 80-85 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। सोयाबीन बीज अंकुरण 70 प्रतिशत होना चाहिए। अंकुरण परीक्षण के लिए किसान भाई गीले टाट के बोरे अथवा ट्रे में 100 दाने गिनकर रख दें और हल्की-हल्की बौछारों के रूप में पानी देते रहें। जब चार-पांच दिन बाद बीज का अंकुरण हो जाता है, तो अंकुरित दानों को गिन लेते हैं। यदि 100 दानों में से 70 दाने अंकुरित हो जाते हैं, तो वह बीज बुवाई के लिए उत्तम होता है। यदि अंकुरण 5-10 प्रतिशत तक कम आता है। यदि एक प्रतिशत कम आता है, तो 1 से 1.5 किलोग्राम बीज, दो प्रतिशत कम आता है, तो 2-3 किलोग्राम बीज तथा 10 प्रतिशत कम आने पर 10-15 किलोग्राम बीज मात्रा बनाकर बुवाई की जानी चाहिए।
बुवाई से पूर्व बीज को पहले थाइरम एवं कार्बेन्डाजिम से करें उपचारित
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग का कहना है कि सोयाबीन को उखटा एवं जड़ सड़न आदि रोगों से बचाने के लिए बुआई से पूर्व बीज को पहले थाइरम एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) तीन ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से अथवा मिश्रित उत्पाद कार्बोक्सिन 37.53 प्रतिशत धन थाइरम 37.5 प्रतिशत (विटावेक्स पावर) दो-तीन ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। इनके स्थान पर बीज उपचार हेतु ट्राईकोडर्मा विरिडी (आठ-दस ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) का भी उपयोग किया जा सकता है। तत्पश्चात जैविक खाद (ब्रेडीराइजोबियम कल्चर एवं पीएसबी कल्चर पांच ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से) उपचारित कर तुरन्त बुवाई करें।
जरूरी है मिट्टी का परीक्षण
कृषि वैज्ञानिक ताम्बे का कहना है कि किसानों को चाहिए कि सोयाबीन का बीज रोपित करने के पूर्व वे अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण अवश्य करवाएं। संतुलित उर्वरक व मृदा स्वास्थ्य के लिए मिट्टी में मुख्य तत्व-नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, द्वितीयक पोषक तत्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, तांबा, लोहा, मैंगनीज, मोलिब्डेनम, बोरॉन साथ ही पी.एच., ई.सी. एवं कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण कराने से यह समय रहते पता चल जाता है, कि यहां खेती कितनी अच्छी होगी और बीज कितना फलेगा।
ताम्बे यह भी कहते हैं कि सोयाबीन को बोने से पहले ध्यान रखें कि खेत समतल होना जरूरी है। जुलाई में बारिश का मौसम शुरू होने पर पानी का खेत में ठहराव न हो, यह आवश्यक रूप से देखा जाना चाहिए। खेत में पानी भर जाने से सोयाबीन की फसल खराब होने की संभावना बनी रहती है। उन्होंने कहा है कि पथरीली भूमि को छोड़कर सभी जगह सोयाबीन को बोया जा सकता है। समतल होने से पानी का निकास होगा ओर पैदावार भी अच्छी होती है। ताम्बे का कहना है कि इसमें भी चिकनी ओर दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है। खाली खेतों की ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से अप्रैल से शुरू करते हुए अधिकतम 25 मई के बीच 10 से 12 इंच गहराई तक कर लेना चाहिए, तब आगे बीज बोना किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक रहता है।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)