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कहते हैं कि छोटा सा प्रयास ही बड़े संकट से मुक्ति का साधन बनता है। दरअसल, छोटा सा निरंतर किया गया प्रयास कब देखते ही देखते बड़ा हो जाता है, इसका आभास हमें तब होता है, जब समग्रता से इसका अनुभव करते हैं। कोरोनो काल में भी देश में ऐसे तमाम छोटे-छोटे सकारात्मक प्रयास हो रहे हैं, जो कई परिवारों के लिए उनके रोजगार का माध्यम बन गए हैं। जब ये शुरू होते हैं तब बहुत कम लोगों को ही अपने पर भरोसा होता है कि वे जीवन में सफलता का मुकाम हासिल करेंगे, लेकिन जब ये सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं तो बहुत सी आंखे इनके काम को देखकर चौंधिया जाती हैं और सफलता के लिए शुभकामनाएं भी देती हैं। आज ऐसी ही एक हकीकत से आपको रूबरू कराएंगे।
महिलाएं गोबर से बना रहीं हवनकुंड पात्र, दे रहीं हजारों को रोजगार
दरअसल, मध्यप्रदेश में ऐसा ही एक काम ”दीनदयाल अंत्योदय राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन” के अंतर्गत जबलपुर जिले के पनागर विकासखंड में संचालित स्व-सहायता समूह द्वारा आजीविका के लिए नित नए प्रयोग के तहत कर दिया गया है। यहां की महिलाओं ने इकट्ठे आकर एक रचनात्मक श्रृंखला शुरू की और अपनी ग्राम पंचायत सुंदरपुर के स्व सहायता समूह गार्गी, अदिति, अपाला, अहिल्या, अनुसुइया और एकता समूह की लगभग 75 महिला सदस्यों द्वारा गाय के गोबर से हवन कुंड पात्र का निर्माण करना आरंभ कर दिया, जिसकी कि मांग आज न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि राज्य के बाहर कई प्रदेशों में बनी हुई है। हजारों लोगों को इन संयुक्त आई महिलाओं ने सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया करा दिया है।
रखा जाता है वैज्ञानिकता और धार्मिकता का ध्यान
जिन हवन कुण्ड का निर्माण ये महिला समूह मिलकर कर रही हैं, उनमें वैज्ञानिक तथा धार्मिक दोनों तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। सुंदरपुर ग्राम की आजीविका मिशन की समन्वयक रिशा पांडेय बताती हैं कि हवन कुण्ड निर्माण में गोबर के साथ सुगंधित जड़ी-बूटी जैसे मालकांगनी, बावुजी, बेलगिरी, हरड़, बहेड़ा, वन तुलसी, कपूर कचरी, नीलगिरी, गोंद, अजमोद, अमलतास, गोरखमुंडी, चंदन चौरा, सिंदूरी पलाश, अर्जुन, गिलोय का उपयोग प्रमुखता से किया जाता है।
हवन कुण्ड निर्माण में होता है जड़ी-बूटियों का उपयोग
रिशा पांडेय कहती हैं कि इसके अतिरिक्त भी पीपल व बेल के पत्ते, गेंदे के फूल, देशी कपूर, अकौआ के पत्ते और तुलसी की मंजरी भी मिलाई जाती है। यहां विशेष यह है कि निर्माण से लेकर पैकिंग तक का समस्त कार्य महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है। कई स्वयंसेवी संस्थानों एवं खुले बाजार की बात करें तो अकेले गायत्री शक्तिपीठ परिवार द्वारा भी इन हवनकुंडों का स्व-सहायता समूह से बड़ी संख्या में क्रय किया जा रहा है।
कुछ महिलाएं प्रेरित हो बना रहीं अन्य उत्पादन
वे कहती हैं कि निर्माण के उपरांत कुछ व्यावसायिक संस्थानों द्वारा इन्हें बाजार उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया जोकि पूरी तरह सफल साबित हुआ है। साथ ही रिशा यह भी बताती हैं कि समूह से जुड़ी महिलाएं इस प्रयोग से आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर हो रहीं है। कुछ महिलाएं अब हवन कुंड के साथ गाय के गोबर से अन्य उत्पाद जैसे गौ काष्ठ, समिधा आदि भी बनाने का प्रयास कर रहीं हैं।
मेलों और प्रदर्शनियों में मिली सराहना
उत्पादों को समय-समय पर प्रदेश भर में लगने वाले मेलों व प्रदर्शनी में भी प्रदर्शित किया जाता रहा है। ओजस्विनी मेला, हितकारिणी महिला महाविद्यालय स्वरोजगार प्रदर्शनी, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की प्रदर्शनी में इन्हें अब तक बहुत अधिक सराहा गया है।
उच्च शिक्षा भी ग्रहण कर रहीं महिलाएं
रिशा पांडेय बहुत ही फक्र के साथ यह भी कहती हैं कि समूह की महिलाएं जो विद्यालय शिक्षा के बाद पढ़ाई छोड़कर घर पर बैठी थीं, उनको भी मिशन के माध्यम से और मध्य प्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत नि:शुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है। इतना ही नहीं उनके बच्चों को भी उच्च शिक्षा दिलवाई जा रही है, जिसमें शासकीय अनुदान प्राप्त हितकारिणी महिला महाविद्यालय, खमरिया शासकीय महाविद्यालय, कौशल विकास केन्द्र रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय का विशेष सहयोग प्राप्त होता है। कहना होगा कि ये महिलाएं वास्तव में ”आत्मनिर्भर भारत” की ओर एक कदम आजीविका, मिशन के साथ बढ़ा रही हैं, जिसमें केंद्र व राज्य शासन का भरपूर सहयोग प्राप्त हो रहा है।
ये छोटे-छोटे प्रयास गढ़ रहे आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर
सच, देश में रोजगार के ये छोटे-छोटे प्रयास ही हैं जो भारत की आज नई तस्वीर गढ़ रहे हैं। देश में कोरोना के कारण लम्बा लॉकडाउन लगा, दुनिया के तमाम देशों एवं आर्थिक विश्लेषकों ने एक सुर में कहा कि इससे भारत की आर्थिक तौर पर कमर टूट जाएगी। जीडीपी ग्रोथ इतनी नीचे गिर जाएगी कि उठना मुश्किल होगा, लेकिन इन प्रयासों को देखकर तथ्य यही सामने आ रहे हैं कि उन सभी आर्थिक विद्वानों एवं अर्थ से जुड़ी तमाम एजेंसियों के दावे आज भारत के संदर्भ में जूठे ही साबित हुए हैं।
देश की जीडीपी 1.6 फीसदी बढ़ी
पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में जीडीपी 1.6 फीसदी बढ़ी है। इससे यह संकेत मिलता है कि कोरोना की दूसरी लहर से पहले देश की अर्थव्यवस्था रिकवरी के रास्ते पर है। इस साल फरवरी में जारी अग्रिम अनुमान में पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर में आठ फीसदी गिरावट आने का अनुमान जताया गया था, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस तरह वास्तविक आंकड़े अनुमान के मुकाबले बेहतर हैं। इससे आज साफ है कि ये छोटे-छोटे रोजगार के प्रयास सतत भारत को आर्थिक रूप से कोरोना के विकट संकटकाल में भी गति प्रदान करने वाले साबित हो रहे हैं।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)