आक्रामक विदेशी प्रजातियां 'केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान' के पारिस्थितिक तंत्र के लिए बनी खतरा अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें...
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राजस्थान के भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आक्रामक विदेशी प्रजातियों से बड़े खतरे का सामना कर रहा है। भरतपुर के वन उपसंरक्षक मोहित गुप्ता ने माना है कि आक्रामक विदेशी प्रजातियां उद्यान के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। उन्होंने इस संबंध में बताया कि इससे निपटने के लिए एक दीर्घकालिक प्रक्रिया पर काम चल रहा है। अभ्यारण्य की सुरक्षा के संबंध में किए गए कार्य को लेकर डीसीएफ मोहित गुप्ता ने काफी विस्तार से जानकारी दी है…
पक्षी अभ्यारण्य की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे अहम कदम
डीसीएफ मोहित गुप्ता बताते हैं कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पिछले एक से डेढ़ साल में मल्टिपल टाइम लॉकडाउन लगे तो हमने मनरेगा योजना के तहत मजदूरों से काम करवाना शुरू किया ताकि ऐसे में उनकी भी मदद हो सके। उस दौरान मजदूरों का ज्यादा काम दिला कर हेबीटाट इम्प्रूवमेंट के कार्य करवाए गए। इसके तहत करीब 600 से 650 मजदूर रोजाना इस पार्क में काम कर रहे थे, जिसमें वैटलैंड के अंदर डीशिफ्टिंग का अहम कार्य किया गया। विलायती बगुल के रिमूवल का काम हो या ग्रास लैंड मैनेजमेंट इत्यादि कार्य इन सबमें हमें काफी फायदा मिला। इससे आसपास के गांवों में भी हमारा अच्छा नाम हुआ।
पक्षियों के लिए उत्तर भारत की सबसे प्रमुख साइट
उल्लेखनीय है कि पक्षियों के लिए सेंट्रल एशियन फ्लाइ-वे में उत्तर भारत सबसे प्रमुख साइट है। ऐसे में इस क्षेत्र में वैटलैंड को रिवाइव करने के लिए व उसे और बेहतर करने के लिए स्क्रैपिंग का कार्य शुरू किया गया। स्क्रैपिंग में हम लगभग पांच से छह इंच ऊपर की मिट्टी को हटाने का काम करते हैं। उससे तालाबों की गहराई तो बनती ही है, साथ ही मछलियां भी अच्छी तादाद में बच पाती हैं और इस लोभ में यहां पक्षियों के ज्यादा आने की उम्मीद रहती है।
यहां आकर पक्षी बनाते हैं अपना घर
जो मिट्टी तालाबों को खोदकर निकाली जाती है, उस मिट्टी का इस्तेमाल कर उद्यान में रोड बनाए जाते हैं, जिससे काफी सारा सरकारी खर्च बच जाता है। इसके अलावा हैबिटेट स्ट्रक्चर को मेंटेन रखने के लिए वैटलेंड्स के अंदर माउंट्स की रिपेयरिंग भी समय-समय पर की जाती है। केवल इतना ही नहीं पक्षियों के बसेरे के लिए देसी बबूल के पेड़ों को सीड सोइंग से उगाने का कार्य किया जा रहा है। दरअसल इन्हीं पेड़ों पर पक्षी यहां आकर अपने घौंसले बनाते हैं। इस प्रकार से उन्हें यहां बेहतर संरक्षण मिल रहा है।
बच्चों और देश के रिसर्चरों को भविष्य में मिल सकेंगे ये लाभ
आगे की योजना को लेकर मोहित गुप्ता बताते हैं कि इस वैटलैंड को ”वैटलैंड बर्ड कंजरवेशन सेंटर” के रूप में विकसित करने की घोषणा इसी साल की गई है, जिसके तहत हमने यहां कार्य शुरू कर दिया है। ऐसे में अगले आने वाले एक से डेढ़ साल में यहां पर काफी नई चीजें लाई जाएंगी, जिससे कि खासकर स्कूली बच्चों को लोकल लैंग्वेज में पक्षियों व पेड़ों की अच्छी जानकारी मिल पाएगी। इसके साथ-साथ यह जानकारी ऑनलाइन माध्यम से भी मिले हमारी ओर से ऐसी कोशिश की जा रही है। इन सबके अलावा एक ओपन रिसर्च डेटा सेंटर का भी प्लान किया जा रहा है, जिसकी मदद से देश के तमाम रिसर्चरों व इंडिपेंडेंट रिसर्चर को यहां से पूरे देश के पक्षियों का डाटा मिलने की उम्मीद रहेगी।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास
पूर्व में भरतपुर पक्षी अभयारण्य के रूप में जाना जाने वाला यहा उद्यान अब केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है। यह दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण या विलुप्त प्राय: पक्षियों के प्रजनन और भोजन के मैदानों में से सबसे अहम है। साल 1982 में केवलादेव को एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था और फिर बाद में 1985 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
1850 के दशक के दौरान यह स्थान महाराजाओं का बतख-शिकार का रिजर्व हुआ करता था, जो अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, चीन और साइबेरिया से बड़ी संख्या में जलीय पक्षियों के लिए प्रमुख शीतकालीन क्षेत्रों में से एक है। आज यह पार्क पक्षियों और जानवरों की करीब 370 से अधिक प्रजातियों जैसे कि बेसिंग अजगर, चित्रित सारस, हिरण, नीलगाय का घर है। यह साइबेरियाई सारस को खोजने के लिए दुर्लभ और मायावी के प्रजनन स्थल के रूप में भी जाना जाता है।